पितृपक्ष में पूर्वजो को याद कर उनके नाम से दें पिंडदान

पितृपक्ष में पूर्वजो को याद कर उनके नाम से पिंडदान किया जाता है। पितृपक्ष के दिन पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए दान-पुण्य किया जाता है। पितृपक्ष के दिन श्राद करने से मनुष्य की आयु बढ़ती है, वंश का विस्तार होता है। इस साल पीतृपक्ष की शुरुआत एक सितंबर से शुरु हो रही है। आपको बता दें हर महीने आमवस्या के दिन पितरो के तर्पण का विधान है। लेकिन पितृपक्ष का महीना पुरी तरह से पितरो को समर्पित होता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए शास्त्रों में श्राद्ध बहुत महत्व माना गया है। कहा जाता है कि पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
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पितरो के श्राद्ध का विधान
पितरो का श्राद्ध उनकी मृत्यु की तिथि पर की जाती है। श्राद्ध के नियम के अनुसार पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी के दिन ही किया जाता है। अगर के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाना चाहिए। जिन पितरों की मृत्यु तिथि याद नहीं हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाना चाहिए।
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पिंडदान की विधि
चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित किया जाता है। जल में काले तिल, जौ, कुशा यानि हरी घास और सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है। इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है। कहा जाता है कि इन दिनों में आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं इसलिए घर आए किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करना चाहिए। Read More
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