लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा हो चुकी है। पिछली बार के मुकाबले इस बार 7 फेज में चुनाव कार्यक्रम सम्पन्न होगा। ऐसे में राजनीतिक दलों ने भी कमर कस ली हैं। सभी राजनीतिक दल अपनी सहूलियत और अपने वोटर्स को ध्यान में रखते हुए अपने चुनावी मुद्दों का चयन करेंगे, लेकिन फिर भी कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिनका सरोकार देश के हर नागरिक से हैं। ये वो मुद्दे हैं, जो चुनाव परिणाम को भी काफी हद तक प्रभावित करेंगे। कौन से हैं वे मुद्दे… आइए जानते हैं:
1990 के समय से ही चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद बड़े मुद्दों में शुमार रहा है, लेकिन इस बार यह मुद्दा हाल ही में हुए पुलवामा हमले के पहले चुनाव के केंद्र में नहीं था। पुलवामा में CRPF के जवानों की शहादत और उसके बाद भारतीय वायु सेना की तरफ से पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक के बाद यह मुद्दा ऐसे मुकाम पर भी आ गया है कि चुनाव की दिशा भी बदल सकती है। यह मुद्दा बीजेपी को बढ़त दिलाने में अहम भूमिका निभा सकता है। बीजेपी यह दिखाने की कोशिश करेगी कि नरेंद्र मोदी ही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो कठोर फैसले लेकर पाकिस्तान और आतंकवाद से मुकाबला कर सकते हैं।
महंगाई
आम तौर पर किसी भी चुनाव में महंगाई सबको प्रभावित करने वाला मुद्दा रहा है, लेकिन इस चुनाव में यह मुद्दा उतना जोर पकड़ता नहीं दिख रहा है। मोदी सरकार कहीं न कहीं महंगाई पर लगाम लगाने में कामयाब रही है। विपक्षी पार्टियां चाहकर भी महंगाई के मुद्दे पर बीजेपी को घेर नहीं सकी हैं। वहीं कुछ जानकारों का कहना है कि महंगाई पर लगाम लगाने का एक बड़ा कारण यह है कि किसान से कम दाम पर ही सामान सामान खरीदा गया। ऐसे में महंगाई कंट्रोल करने में तो भले ही कामयाबी मिली हो, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पार्टी को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
नौकरी
मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के तरकश में ‘रोजगार’ का तीर सबसे अहम है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियां सरकार को कई बार इस मुद्दे पर घेर चुकी हैं। मोदी सरकार को 2014 में नौकरियों का वादा करने पर बड़ी सफलता मिली थी, लेकिन कहीं न कहीं वह इस वादे को पूरा करने में सफल नहीं दिख रहे हैं। सरकार पर डेटा में हेरफेर कर इस मुद्दे के प्रति गंभीरता नहीं बरतने का आरोप भी लगता रहा है। सरकार ने ईपीएफओ नंबर बढ़ने और मुद्रा लोन की संख्या बढ़ने का हवाला देकर रोजगार का वादा पूरा करने के सबूत देने की कोशिश की है, लेकिन विपक्ष इससे कहीं भी सहमत नहीं है।
मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के तरकश में ‘रोजगार’ का तीर सबसे अहम है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियां सरकार को कई बार इस मुद्दे पर घेर चुकी हैं। मोदी सरकार को 2014 में नौकरियों का वादा करने पर बड़ी सफलता मिली थी, लेकिन कहीं न कहीं वह इस वादे को पूरा करने में सफल नहीं दिख रहे हैं। सरकार पर डेटा में हेरफेर कर इस मुद्दे के प्रति गंभीरता नहीं बरतने का आरोप भी लगता रहा है। सरकार ने ईपीएफओ नंबर बढ़ने और मुद्रा लोन की संख्या बढ़ने का हवाला देकर रोजगार का वादा पूरा करने के सबूत देने की कोशिश की है, लेकिन विपक्ष इससे कहीं भी सहमत नहीं है।
गांव, किसान का मुद्दा
किसान- या कहें कि ग्रामीण वोटर्स- ने 2014 में मोदी सरकार की जीत में बड़ा रोल निभाया था। वहीं इस बार कृषि निवेश में बेहतर रिटर्न न मिलने से ग्रामीण वोटरों में नाराजगी है। नोटबंदी जैसे कदमों ने इस मुद्दे को अहम बना दिया है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के चुनाव में कांग्रेस ने इस मुद्दे का पूरा फायदा उठाने की कोशिश की और उन्हें सफलता भी मिली। इसके बाद बीजेपी ने कई और रास्तों से किसानों की मदद कर इस कमी को पूरा करने की कोशिश की है। Read More
किसान- या कहें कि ग्रामीण वोटर्स- ने 2014 में मोदी सरकार की जीत में बड़ा रोल निभाया था। वहीं इस बार कृषि निवेश में बेहतर रिटर्न न मिलने से ग्रामीण वोटरों में नाराजगी है। नोटबंदी जैसे कदमों ने इस मुद्दे को अहम बना दिया है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के चुनाव में कांग्रेस ने इस मुद्दे का पूरा फायदा उठाने की कोशिश की और उन्हें सफलता भी मिली। इसके बाद बीजेपी ने कई और रास्तों से किसानों की मदद कर इस कमी को पूरा करने की कोशिश की है। Read More
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