
अक्सर आपने सुना होगा कि कई ऐसे मंदिरों, गुरूद्वारे, और दरगाह के बारे में जहां की ऐसी मान्यता हैकि वहां जो भी मांगो वो पूरा जरूर होता है… इसी तरह आगरा के गुरूद्वारा दुख निवारण गुरू का ताल की भी ये मान्यता है कि यहां मन में सोची हुयी मनोकामना भी ऊपर वाला सुन लेता है और वो जल्द ही पूरी हो जाती है…
अक्सर आपने सुना होगा कि कई ऐसे मंदिरों, गुरूद्वारे, और दरगाह के बारे में जहां की ऐसी मान्यता हैकि वहां जो भी मांगो वो पूरा जरूर होता है… इसी तरह आगरा के गुरूद्वारा दुख निवारण गुरू का ताल की भी ये मान्यता है कि यहां मन में सोची हुयी मनोकामना भी ऊपर वाला सुन लेता है और वो जल्द ही पूरी हो जाती है… इस जगह को पहले बारादरी के नाम से भी भारत में जाना जाता था…

इस गुरूद्वारे में कई ऐसी खास बाते हैं जो शायद ही किसी को पता हो… यहां लगभग 450 वर्ष पुराने स्तंभ है जिनका रंग लाल है…ऐसा कहा जाता है कि इस गुरुद्वारे में सिक्खों के पहले, छठे, नौंवे और दसवें गुरू के कदम पड़े थे… जिनमें पहले गुरू का नाम श्री गुरूनानक देव छठे गुरू श्री हरगोविंद साहिब, नौंवे गुरू श्री गुरू तेग बहादुर और दसवें गुरू श्री गुरू गोविंद सिंह था… अगर इस गुरूद्वारे के निर्माण की बात की जाये तो इसका पूर्णतया निर्माण सन् 1970 में करवाया गया था लेकिन इसके स्तंभ 450 साल पुराने बताये जाते हैं… इस गुरूद्वारे जुड़ी कई कहानियां हैं जिनमें से एक कहानी गुरू तेगबहादुर के जीवन से जुड़ी हुयी है…
कहा जाता है कि गुरू तेग बहादुर की गिरफ्तारी के आदेश मुगल बादशाह औरंगज़ेब के जरिये दिये गये थे और साथ में ये भी कहा गया कि जो भी गुरू तेग बहादुर को गिरफ्तार करेगा उसको इनाम मिलेगा… ऐसे एक व्यक्ति ऐसा था जिसने सोचा कि वो गुरूतेग बहादुर को गिरफ्तार करा इनाम पाकर अपनी गरीबी दूर कर ले और उस व्यक्ति की ये इच्छा गुरूतेग बहादुर ने पूरी की अपनी गिरफ्तारी खुद करवा कर… तब से इस गुरूद्वारे को खासतौर पर गुरूद्वारा दुखनिवारण गुरू का तालकहा जाने लगा…
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