बिहार चुनाव का आगाज
बिहार चुनाव का बिगुल बज चुका है तीन चरणो में विधान सभा चुनाव होने को नेताए अपने जुगत मे लग गये जनता को लुभाने का भी कार्य भी शुरू हो चुका है अगर वही बात करे नीतीश कुमार कि तो 15 साल से बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे हैं – और अब तक जिन बातों को लेकर वो वोट मांगते हैं उनमें से एक उनके पहले के 15 साल के शासन की याद दिलायी जाती है
लालू-राबड़ी शासन जिसे जंगलराज के तौर पर पेश किया जाता रहा है.
सवाल है कि अगर वास्तव में बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी फैक्टर काम कर रहा है तो उसका फायदा किसे मिल सकता है? क्या विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को इसका फायदा मिल सकता है? क्या ये फायदा बंट कर तेजस्वी यादव और बीजेपी को मिल सकता है? या फिर ये बीजेपी को मालामाल कर सकता है?तेजस्वी यादव अपनी तरफ से कोई कसर बाकी तो नहीं ही रखे हैं. राष्ट्रीय जनता दल के लालू-राबड़ी शासन के जंगलराज के आरोपों के लिए कई बार माफी मांग चुके हैं. चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव के जेल में होने की वजह से पोस्टर से उनके फोटो भी हटा चुके हैं – रही बात नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की तो 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव को याद किया जा सकता है. यूपी और बिहार में वोटिंग पैटर्न बिलकुल एक जैसे तो नहीं हैं लेकिन जातीय समीकरणों के मामले में काफी मिलते-जुलते जरूर हैं. तब बीएसपी का शासन रहा और मायावती मुख्यमंत्री थीं. Read More
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